Aniket Kumar Gupta {Bhaarat} Kanpur

~*~ Mythological ~*~

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|| ​श्री गुरुवे नमः ||

~*~ राम प्रभु का राजतिलक ~*~ 

Dedicated to my Guru

Shri Ravindra Jain ji

Written by -

~*~   ​अनिकेत कुमार ~*~

​This poem contains some lines having star ' * ' it indicates that these lines are based on the lines written and sung by Shri Ravindra Jain ji. 

Just like him, his lines based on the lines written by Maharishi Valmiki  and Goswami Tulsidas.

 Since I consider him above Maharishi Valmiki  and Goswami Tulsidas, my lines are based on his holy and divine lines and dedicated to him, because I have learnt all these things from him and he is my Eternal Guru.

॥ जय श्री राम ॥
॥ श्री गणेशाय नम ||
 
श्री राम कथा है, अति पाव‌नी, पावन है जिसका हर एक प्रसंग, प्रसंग - प्रसंग है जिसका न्यारा,
एक मैं भी कहने जा रहा , लेकर हे नाथ नाम तिहारा।
ज्ञान नहीं इतना,  शक्ति नहीं इतनी, 
फिर भी हे  राम प्रभु,  करना भक्ति प्रदान इतनी ।
कि कर सकू,  प्रभु आपके गुणों का गुणगान, 
 दूर करना अवगुण मेरें , समझ कर मुझे बालक नादन | 
*** श्री राम कथा , एक परम पावन कथा ```कथा यह पुण्य प्रसंगा है,
तन मन पावन करने वाली, कोटि कोटि शोक संताप व पाप हरने वाली गुण गंगा है,
कथा यह पुण्य प्रसंगा है |
श्री राम प्रभु का नाम लें, अब मैं राम राजतिलक की पावन कथा सुनाता हूँ, 
स्मरण कर राम प्रभु का दरबार, मन ही मन मैं हर्षाता हूँ,
 मैं अति पुण्य दायनी कथा आज सुनाता हूँ ।
जब होना था राम प्रभु का राजतिलक, सजाना था प्रभु राम का दरबार. 
तब गुरु वशिष्ठ जी बैठ भक्तों और मित्रों संग राम के`````राम के राजतिलक पर करें विचार ।
वशिष्ठ जी बोले, संयोग से कल का योग अच्छा है ,
कल ही हो श्री राम राज तिलक,  ऐसी ही सुरगण की भी इच्छा है ।
राम राजतिलक देखने को सभी है लालायित,  सभी का है मन ,
पर उचित रूप से राम तिलक हो सम्पन्न, है इसमें एक विघ्न, है इसमें एक अड़चन ।
समुद्र में होता समस्त नदियों का जल  समाहित, सो राजतिलक हेतु सागर का जल लाना है,
करके राजतिलक,  त्रिलोकी नाथ को अवधनाथ बनाना है।
परन्तु समुद्र है दूर - दूर समुद्र से भला जल कौन लाएगा, 
कार्य है यह अति दुष्कर - असहज - असहज को सहज भला कौन बनाएगा ।
निज आसन से तब डोलें,
हरने को पीर - हनुमत वीर, धर कर धीर, धार कर धीर, यह बोले।
श्री राम कृपा से सागर तट पर मैं जाऊँगा,
राम काज में न होये अकाज``` काज यह मैं राम का चाकर``` सागर जाकर कर के आऊँगा ,
सागर तट पर.मैं जाऊँगा ।
तापश्चात -
ले कर अपने प्रभु राम का नाम,
जपते- जपते रघुपति राघव राजा राम,
राम काम होए अविराम ,
सम्पन्न कर आए , पवनवेग से पवनसुत यह भी काम ।
अब गुरुजन ,परिजन, पुरजन संग हनुमत, सुग्रीव विभीषन, भुला कर  तन मन करे श्री राम राजतिलक की तैयारी,
हो करके आनंदित , हर्षित , मुदित नाच रहा तिहुं लोक , संग नाच रही अयोध्या सारी,
करें सभी राजतिलक की तैयारी,
अब जो पूरी हुई राम राजतिलक की तैयारी,
मुदित हो झूम उठी अयोध्या सारी॥
अगले दिन अत्यन्त मनोहारी मंगलकारी दिन है आया,
राम राजतिलक पर राम भक्तों ने सश्रद्धा, रामदरबार सजाया 
अत्यंत पुण्यकारी दिन है आया,
राम बनेंगे अब रघुराया, मंगलकारी दिन है आया।
अत्यंत मंगलकारी दिन है आया॥
घर-घर बाज रही बधाई, 
चहुँ दिश ऐसी खुशियाँ छाई,
कि खुशियों पर खुश हो, सारी खुशियों ने मानों नूतन खुशियाँ हैं पाई।
दसों दिशाओं में दे रहा मंगल गीत सुनाई, 
बाजे रे  बाजे ,घर-घर आज बधाई॥
करे तिहुं लोक यही गुणगान,
चल अवधपति बनने को हमारे भगवान, 
जय श्री राम कृपानिधान, जय श्री राम कृपानिधान॥
देख विराजित सिंहासन पर राजा राम संग माता सीते,
करें सभी प्रार्थना यह पल कल्प सम बीते।
जो देखे सियाराम का जोड़ा  सो मंत्रमुग्ध हो जाए ,
***  वैकुण्ठ के लक्ष्मी नारायण का जोड़ा - जोड़ा  धरती पर सियाराम कहाए।
सहस्त्रों मुखों की महिमा, तेज ,  सुन्दरता जिसकी  वरणी न जाए।
जो देखे सो परम शांति , परम पद को पाए,
सुंदरता ऐसी, ऐसी आभा , देख जिसे कोटि-कोटि रति काम लजाए,
बैकुंठ के लक्ष्मी नारायण का जोड़ा जोड़ा धरती पर सियाराम कहाए ।
 सश्रद्धा सभी शीश नवाए ,कर वंदन सभी हर्षाए,
 ***  बैकुंठ के लक्ष्मी नारायण का जोड़ा -  जोड़ा धरती पर सियाराम कहाए ,सियाराम कहाए ॥
लखि एक श्यामल और गौर शरीरा ,
महामतिशाली रणधीरा,  मतिधीरा भयउ अधीरा,
 लखि एक श्यामल और गौर शरीरा ।
भक्त शिरोमणी देवर्षि नारद चातुर ‍‍‍‍‍‍- हो करके आतुर,  नारायण-नारायण की रट को भूलें,
राम दरबार को निहार, राम प्रभु की कर जय-जयकार,भक्ति के पावन-पालने में  बालक भाँति झूलें।
नारायण-नारायण की रट को भूलें॥
राम दरबार की झाँकी मनोहारी-से होने सुखारी, अरुण भी अश्वो पर लगाम लगाए
राम के मुख पर विराजित तेज , सूर्य से भी न सहा न जाए,
नैन मूंद वह भी प्रभु राम के गुण गाए,
हे सियाराम ! हे सियाराम ! अब तुम ही होऊ मोहे सहाय,
तेज तुम्हारा सहा न जाए ॥
राम दरबार के दृश्य के दरस को ,शिव ने ध्यान समाधी से त्यागा,
शिव हैं राम के आराध्य देव परम - परम  भक्त राजा राम के - राम के अनुरागा।
जब भोले - भंडारी,  कैलाशपति , नील कंठ, नाथ त्रिपुरारी ने आँखें खोली।
तो दोऊ कर जोर उमा उनसे बोली॥
किस कारण नाथ भंग हुआ तप है तुम्हारा,
किस भक्त ने है तुमको पुकारा।
शिव बोले, मनोयोग से सुनो-सुनो, हे पार्वती हिमालय सुजाता।
ध्यान लगा  कर सुनो-सुनो है पार्वती हिमालय सुजाता
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता में मोड नया एक आता,
देख जिसे आज सम्पूर्ण जग है हर्षाता,
मनोयोग से सुनो-सुनो, हे पार्वती हिमालय सुजाता।
अयोध्या का दृश्य दिखा कर शिव बोले,  सुनो उमा,
सिंहासन पर विराजित हैं राजा राम - संग उनके राजित है सिय रूप में रमा।
सजा हुआ है आज मेरे प्रभु का पावन दरबार,
संग में तुम भी करो  सियाराम की जय जयकार,
होएगा हरष अपार, करो राम प्रभु की जय जयकार।
परम यह पावन प्रसंग - प्रसंग  पुनीता है।
नायक जिसके है रामचन्द्र, नायिका भगवति सीता है,
कथा राम को अत्यन्त पुनिता है,
प्रभु हैं राम चन्द्र संग राजित माता सीता है, 
कथा यह अत्यंत पुनीता है। 
करके  दरस जीवन सफल बनाओं,
मैं भी गुणगान करूँ, संग मेरे तुम भी करते जाओ,
फल मनोवांछित पाओ, राम, सियाराम  जयराम कहते जाओ॥
फिर प्रसन्न मन, ब्रह्मा जी ने यह प्रसंग जब ब्रह्माणी को सुनाया,
तो कहते-सुनते ब्रह्मा के हस्त में राजित वेदों के भी श्रवण में आया।
मानो जैसे, परम पुण्य के धाम वेदों का भी पुण्य आज फलित हो आया,
सुन कर जिसे चारों वेद हरषाया,
बड़े संयोग से सुअवसर है पाया,प्रत्येक वेद हरषाया॥
संग सभी के बनने को बड़भागी,
वेदों ने राम दरबार जाने की आज्ञा माँगी।
वेद बोले है - चहुँ-मुखि  सृष्टा,
हम भी होना चाहते हैं दृष्टा । 
सो हमें भी राम दरबार जाने दे।
हो रहा है गुणगान प्रभु का, गुणगान हमें भी गाने दे।
ब्रह्मा जी बोले, सुनो हे वेद,
हो प्रसन्न, त्यागो संशय ,शोक और खेद,
मत हो इतने आकुल-  बेकल, आतुर इतने - इतने अधीर,
राम दरबार जाओ तुम,  श्रीराम के गुण गाओ तुम```` तुम धर कर के मानव शरीर ॥
*** तत्पश्चात मानव रूप वेद धर आए,
दोऊ कर जोर  राम गुण गाए,
गुणशील - गुणनिधि, राम का गुणगान कर सभी हरषाए,  
हरष इतना ,  हरष  हृदय न समाए,
सब कुछ बिसरा राम गुण गाए।।
वेद संग नारद-शारद, ब्रह्मा उमा, शम्भु,  गुणगान गा रहे,
सुनकर जिसे,  समस्त गगनचर, जलचर, नदियाँ- निर्झर, क्या रात्रि-चर, क्या दिनचर सभी प्रसन्नता को पा रहे।।
इस प्रकार से वशिष्ठ जी ने राम जी का राज्याभिषेक किया,
अयोध्या की वह पावन नगरी चौदह बरस जिसे भारत ने सम्भारी- करी जिसकी रखवारी , वह राम को दिया।
अब पूर्ण हुआ राम राजतिलक, हुआ तिहुं लोक प्रसन्न,
 यह परम पुण्य प्रसंग, लौकिक रूप से हुआ सम्पन्न।
परन्तु रामकथा का अथवा उसके किसी  प्रसंग का कहां कहीं समापन,
आदि अंतहीन मध्य है न , न ओर न छोर जिसका,  कहां से भला होगा उसका मापन।
श्री रामकथा एक विशाल ,अथाह महासागर,
बुद्धि मेरी , हृदय मेरा एक छोटी सी गागर,
मेरा मन को मन्दिर बना, रहना तुम उसमें आकर,
धन्य हो जाऊंगा नाथ,  तुम्हारी भक्ति मैं पाकर,
बुद्धि मेरी,  हृदय मेरा एक छोटी सी गागर, 
रामकथा  विशाल ,अथाह महासागर।
लेकर के नाम राम का ,करता सब तुम्हें समर्पित,
गुरू मेरे श्री रविन्द्र जैन जी,कथा, कलम सब उन्हें अर्पित।
बात नहीं है,  मात्र यह कपोल कल्पित,
यह तो है भाव वो ,  भाव जो ,  हृदय मैं मेरे स्थित,
गुरू हैं मेरे श्री रविन्द्र जैन जी,
कथा, कलम सब उन्हें समर्पित, 
कथा, कलम सब उन्हें समर्पित । 
करके सियाराम को नमस्कार, कर ज़ोर कर , कर वन्दन बारम्बार,
अब कलम पर विराम लगाए अनिकेत कुमार,
हे राम प्रभु हे तारनहार, हे जगतप्रतिपाला,
हैं दीनदयाला विश्वाधार।
समस्त भूल भुला कर मेरी, मेरे भेंट को कर लेना स्वीकार,
हे जगत के नाव के खेवईया, हमारी भी नईया लगाना पार,
नईया जो फँसी मझधार।
तुम्हीं हो नाथ जीवन मेरे , मेरे जीवन का आधार,
अपने चरण सरोज रज का दास बना,  करना हमारा उद्धार,
हे कृपासिन्धु ! हे दीनबन्धु ! हम हैं तुच्छ भक्त एक - एक दास तिहार।
अपनी शरण में राखो हर बार, हम हैं दास तिहार,
भक्ति प्रदान कर , करना प्रभु हमारा उद्धार,
हम हैं दास तिहार, हम हैं दास तिहार,
॥ जय श्री राम ॥
इति

माता सीता का धरती में समाना Read more

जब लव कुश ने प्रभु को अपना परिचय बतलाया```रिश्ता उनका उनसे क्या है उनको यह समझाया````

तब प्रभु बोले सिया को राज भवन में आना होगा````हैं वो पतिव्रता पवित्र प्रमाण इसका बतलाना होगा```

बीता वह दिन वह रात बीती`अब नयी सुबह है आई```वाल्मीकि संग``संग लव कुश को लें सिया राज भवन में आईं```

दो खंड हुए प्रजा के``` एक बोला सिया का शपथ ग्रहण करना अनीति अनाचार```तो दूजा बोला नहीं यही है नीति और धर्माचार``

सिया बोली जय जय जय हे रघुराई``अब मैं आपकें समक्ष करतीं हूँ यही दुहाई```

मैं दशो दिशाओं यक्ष गन्धर्व किन्नर देव दनुज मनुज एवं पञ्च महाभूत वायु अग्नि जल पृथ्वी नभ सभी को साक्षी मन कर यह कहती हूँ```````

यदि मैंने मनसा वाचा कर्मणा से अपने स्वामी को ही माना है``` हित अहित परहित सदैव उन्ही में जाना हैं```

तो हे धरती माता तुम आओ``` संग में मुझे अपने ले कर जाओ```

अब मुझे नहीं हैं तनिक भी जीने की आस``` गुरुजन परिजन पुरजन राजन मुझे रोकने का न करना कोई भी प्रयास````अब मुझे नहीं हैं तनिक भी जीने की आस```

यही होगा प्रमाण मेरा सत्य कर इसे दिखलाओ``` हे धरती माता अब तो तुम आओ``````

बिजली चमकी फट गयी धरती``धरती में से वासुकी नाग वाले सिंघासन पर बैठी धरती माता आई```सभी को लगा मानो सिय  हो चली अब पराई```

सिय को धीर धरा``धरा बोली``सिय तेरे लायक नहीं ये धरा````व्यर्थ ही यहाँ कें कारण तूने यह शील सौम्य रूप धरा````

सिय बैठ गयीं धरती माता के निकट उनके सिंघासन पर जा कर ```सिया को ले चली माता धरती```धरती कें अन्दर`````

जब गुरुजन परिजन पुरजन प्रियजन प्रजाजन सभी हुए असहाय ```तब क्रोध कर राजा रामचन्द्र आगें है आये``

धरती से कहे राम हे धरती तुम मुझे मेरी सीता लौटाओ```अन्यथा मेरे क्रोध का भागीदार बन अपना  सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करवाओ```

वन पर्वत गिरि नदी से रची यह सृष्टी``सृष्टी पल में यह  मिटाऊंगा```अंत-हीन जो है यह सृष्टी``सृष्टी का उस, अंत कर मैं दिखलाऊंगा````

यह कह  रघुवर ने  प्रत्यंचा पर तब बाण चढ़ाया```समय सृष्टी के अंत का तब ```जब आया```

तब ब्रह्म देव प्रगटे राज महल कें अन्दर ``` वे बोले जय जय हे कृपा के सागर`` जय जय जय हे रघुवर```

आप तो है मर्यादा पुरषोत्तम धीर वीर और गंभीर``` तो साधारण मनुष्य के भाति क्रोध कर ना होये इतने अधीर```

नाग लोक की राह लें सिया अपने परम धाम साकेत धाम को जाएँगी ``` आपके महापरायण वैकुण्ठ गमन क पश्चात पुनः वो आपको पाएंगी``

ब्रह्मदेव अंतर्धयान भये यह कह कर `````क्रोध अपना अब शांत कर रहे हैं रघुवर```

थी  इस प्रकार से माता सीता धरती में समाई`````और इस कथा को अनिकेत कुमार ने है ऐसे बतलाई``

जय जय जय हे रघुराई``जय जय जय हे रघुराई```````

 

श्री राम मंदिर Read more

 

राम मंदिर हमें बनाना है```हिंदुत्व अपना हमें बचाना हैं``
पर क्यों सोचें हम अपने देश की````सोचेंगे तो हम अपने धर्म विशेष की```
जिस देश में भुखमरी आज भी छाई है```बेरोज़गारी ने शरण जिस देश में पाई है````
किसान जहाँ का भूखो मरता हैं````फांसी पे लटक आत्महत्या जहाँ करता है```
नारी एक जहाँ पूजी जाती है```फिर भी इज़्ज़त अपना जहाँ बचा नहीं पाती है```
उस देश में  राम मंदिर तो हम बनाएंगे```पर राम के आदर्शो को नहीं हम बचाएंगे```
राम मंदिर तो सहजता से बन जायेगा```पर क्या उस मंदिर में रामलला भला रह पायेगा```
राम मंदिर बनने से क्या राम राज्य आ जायेगा``` या राम मंदिर का अस्तित्व-अस्तित्व राम का बचा पायेगा```
खून आंसू से बने उस मंदिर को देख राम भी घबरायेंगें```निज घर त्याग पुनः -पुनः स्वेच्छा से वन को ही जायेंगें```
तो राम मंदिर से पहले, राम को हमें लाना है````मन में अपने राम बसा उसे ही अवध हमें बनाना है````
जन-जन का मन, जब राम का मंदिर बन जायेगा````तभी धरा पर राम राज्य स्थापित हो पायेगा```
श्री राम जी की बस यही पुकार``मंदिर को नहीं राम को बचा लो अबकी बार```
यही सन्देश दे कलम पर विराम लगाए अनिकेत कुमार`````
मत करो राम के आदर्शो का संघार```मत होने दो राम जी की हार```
राम जी को बचा लो अबकी बार````श्री राम जी को बचा लो अबकी बार```
श्री राम जी को बचा लो अबकी बार```

 

पुनः उठी वो बात पुरानी Read more

 

पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,

वही राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद की कहानी |

पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,

हिन्दू मुस्लिम फिर लडेंगे, ले कर अपनी अपनी निशानी,

फिर बहेगा खून बन कर के पानी,

पुनः उठी वो बात पुरानी |

 

देखो अब किस जाती को पड़ती है, मूह की खानी,

राम अल्लाह कभी ना चाहे, हो उनके नाम पर जीवन हानी,

निर्दोषों का निर्मम खून बहाना, नहीं कहलाती ये कुर्बानी,

जिस ज़मी के नाम पर खून बहे, नहीं है वो जमी, पवित्र सुहानी,

पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,

वही राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद की कहानी |

 

जो धरम मानव को भरमाये,

जो धरम हिन्दू मुस्लिम कह, एक मानव से मानव को लडवाए,

जिस धरम के कारण एक मानव , एक मानव का रक्त बहाये,

फिर वो धरम – धरम नहीं, मात्र एक ढकोसला ही कहलाये,

ऐसे नीच धरम को देख , राम अल्लाह भी होते है, शर्म से पानी पानी,

पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,

वही राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद की कहानी ,

पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी|

 

अगर यही कलयुग का काला अँधेरा है,

तो कहाँ छिपा है, वो सूरज, आज जिसके इंतजार में रोता सवेरा है,

राम अल्लाह के अस्तित्व को, आज चहुदिश से विनाश ने घेरा है,

तो जो धरम आग लगायें , वो नीच धरम न तेरा है , न मेरा है,

असंख्य कुरीतियों का, यह धरम एक बसेरा है,

इस धरम का पालन, राम अल्लाह के संग इमानदारी नहीं, यह तो है बेईमानी,

पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,

वही राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद की कहानी ,

 

~*~ अनिकेत कुमार {भारत} ~*~   

अतयंत मनोहारी, मंगलकारी दिन है आया Read more

अतयंत मनोहारी, मंगलकारी दिन है आया```चार बहन संग चार भाइयो ने जब ब्याह रचाया```
जनकपुरी में होने लगी चारो बहनो की विदाई```सिय संग उर्मिला मांडवी सुतकीर्ति अयोध्या आई```
फिर दिन आया एक सुहाना```तय हुआ राम को अवध नरेश है बनाना```
हर घर में दे यही बात सुनाई```राम बनेंगे हमारे रघुराई```
पर मायापति ने निज भक्तो पर अपने-अपनी ऐसी माया चलाई```मंथरा ने कैकई की मति फिराई```
उसको उसके दो वचनो की याद दिलाई```राम न बन पाए रघुराई````

 

अतयंत दुखदाई पीड़ाकारी दिन है आया```लखन सिय संग वन को जा रहे रघुराया````
अवधपुरी में हो रही दुःखद विदाई```विदा करने सगरी प्रजा घरो के बहार आई ````
विधना तेरा ये लेख किसी विधि , किसी के मन को ना भाया```स्वयं मायापति जा रहे है वन, सब पर चढ़ा के अपनी माया````
इस प्रसंग को अनिकेत कुमार ने है ऐसे बतलाया ```` जय जय जय हे रघुराया```
जय जय जय हे रघुराया```

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1 . उसके पास शब्द थें, 2 . आदतें ग़र बुरी लगें हमारी, 3 . बहाने बहुत थें 4 . आज भी ये दिल``` 5 . ख़ामोशी महज़ ख़ामोशी नहीं , 6 . काश कोई एक लम्हा होता 7 . जी रहां हूं अकेले, 8 . हम भी अच्छे हो गए 9 . एक अतीत 10 . कभी जो तुम पास हमारें थें` 11 . ख़ामोश नहीं रहतीं आँखें``आंखें भी बहुत कुछ कह जातीं हैं``` 12 . बन परवाना शमा की ओर जलने ना जाऊंगा```` 13 . यूँ ना देखो दर्पण को``` 14 . हम तो करेंगें इन्तज़ार 15 . कहने को तो बहुत कुछ है 16 . जी रहा था तब तक 17 . कुछ सवाल 18 . ख़ुश था तब तक. 19 . फिर चला हुं वीराने में 20 . गुमनामी ही हमारी पहचान हैं 21 . मौन पर मैं रहता हूं.. 22 . ना था छोटा तब तक 23 . बहुत ही गहरा एक राज़ हूं मैं... 24 . वो अनिकेत कहां हम है। 25 . बहुत से मिले हुनर, 26 . ख्वाबों में ही जी लेता हूं ... 27 . मयस्सर जो होती 28 . पर मैं ना बदला 29 . जागती आंखों से देखें जो सपने, 30 . गुमनामी 31 . दूर उन यादो से हूँ मगर 32 . एक बार मोहब्बत कर बैठें थें 33 . फिर एक शाम ढली`````` फिर तेरी याद आयी 34 . कभी जो तुमसे नज़रे मिली 35 . दिल में उठता है दर्द``` आतीं हैं जब यादें बेदर्द``` 36 . हमने तुमको चाहा कितना ये तुम क्या जान पाओगें 37 . जब साथ चले तो लगा साथ है निभाना 38 . जिन्होंने दिया हैं ज़ख़्म ला कर के वही दें मरहम``` 39 . ज़िन्दगी किस मोड़ से गुजरी 40 . मान के दुनिया तूझे 41 . कोई तो आस पास रहता है 42 . अनगिनत इच्छाएं मन की 43 . उठो चलो हमें चलना है 44 . इतनी जल्दी भी क्या है 45 . फिर चला हूं , अतीत में मैं, 46 . इन राहों से तुम भी हो अनजान 47 . कभी कुछ था देखा तुममें 48 . भविष्य बनाने की ख्वाहिश थी 49 . दिन वो फिर आएंगे 50 . मुट्ठी में बंद किया था वक़्त को, 51 . वक़्त और मोड़ All posts